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Saturday, January 28, 2012

चीनी परंपरा की कहानियां


गुरुवार को कमानी प्रेक्षागृह में हुई पीकिंग अंपिरा की प्रस्तुति कई छोटी-छोटी प्रस्तुतियों का एक संग्रह थी। चीनी सोंदर्य- बोध मंे रंगों को एक खास तरह से बरतने की परंपरा है। तीखेपन से मुक्त और क्रमशः गाढ़े से हल्के होते हुए। यह प्रस्तुति भी प्रथमदृष्टया इसी वजह से ध्यान खीचती है। मंच पर एक ही कलाकार है, लेकिन उसकी वेशभूषा और मेकअप में शांत, राहत देने वाले रंगों का एक विशिष्ट आकर्षण है। प्रस्तुतिकर्ता की भाव-भंगिमाएं संगीत स्वरों के मुताबिक आकार ले रही हैं, और यही इसकी नाटकीयता है। कथ्य के नाम पर चीनी परंपरा की कुछ कहानियां हैं, लेकिन यह कथ्य इतना साकेतिक तरह से घटित होता है कि घटनाएं अपने में रुचि का विषय नहीं बन पातीं।

एक कहानी में नायिका बताती है कि वह सुबह उठी तो जाने क्यों बहुत भावुक महसूस कर रही थीं फिर कुछ काम न होने से वक कढ़ाई- बुनाई करने लगी। फिर वह शानदार मौसम का जिक्र करती है। मंच पर इस दरमियान कढ़ाई किए हुए कपड़े के कवर वाली दो कुर्सियां और एक मेज रखी हैं। यह एक प्रेमकथा है। इसके अलावा ‘परी द्वारा फूलों को बिखेरना’, ‘उत्सवी लालटेनों की सूची’, ‘बांस के उपवन में’ आदि शीर्षक प्रस्तुतियां भी हैं।

‘बांस के उपवन में’ शीर्षक प्रस्तुति में पात्रों की तादाद सबसे ज्यादा थी। चार पुरुष पात्रा इसमें पीले वस्त्रों में हैं और इतने ही स्त्राी पात्रा आसमानी परिधान में आसमानी कपड़ों में। इनके बीच काले परिधान में एक पात्रा जोरदार कलाबाजी करता हुआ मंच पर प्रकट होता है। चीन के सेंट्रल एकेडमी ऑफ ड्रामा की इस प्रस्तुति के निर्देशक ज्यांग यू ज्यांग हैं। चीनी ऑपेरा अपनी प्रस्तुति में भले ही जितना भी परिष्कृत हो, पर इसकी सामग्री चीनी परंपराओं से ही ली जाती रही है।

- संगम पांडेय

(जनसत्ता, 14 जनवरी 2012 से साभार)

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