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Monday, December 12, 2011

हिंदी लेखन की विविध छवियों का कोलाज

- अरुण नारायण -

डा. कुमार विमल हिंदी आलोचना के एक दिग्गज स्तंभ रहे हैं। अभी ही उनका निधन हुआ है। प्रस्तुत पुस्तक उनके अब तक के संपूर्ण विधाओं में लिखे प्रतिनिधि रचनाओं का संग्रह है। आलोचना, संपादकीय टिप्पणियां, यात्रा विवरण, ललित निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, कहानियां, कविताएं और टीप और टीपें जैसी अलग-अलग विधाओं की उत्कृष्ट रचनाए इसमें हैं। आलोचना खंड में विमल जी के 10 लेख हैं। इनमें पर्याप्त वैविध्य है। एक ओर आजादी के आंदोलन मंे लेखकों की भूमिका की तहकीकात है तो दूसरी ओर नाटक की क्या स्थितियां हैं इसपर भी उनकी गहरी नजर है। प्रसाद, दिनकर, अज्ञेय, निराला और प्रेमचंद पर एक-एक लेख हैं। इसके साथ ही आधुनिकता और राष्ट्रवाद पर भी उनके लेख हैं। ये लेख समकालीन लेखन से अलग गहरे कंसर्न और विश्लेषण के साथ लिखे गए हैं। इसलिये यहां आपको चालू और तात्तकालिक प्रवृतियों के समानांतर एक चिंतनशील और निर्भीक विश्लेषण मिलेगा।

पुस्तक के संपादकीय अग्रलेख और टिप्पणियां साहित्य के षास्त्रीय और गंभीर सवालों पर केंद्रित हैं। सौंदर्यशास्त्र, अस्तित्ववाद, शुद्व कविता, कला की अवधारणा आदि कई दुरूह सवालों को विमल ने डील किया है। हालांकि इन लेखों की भाषा पारंपरिक फैब्रीकेटेड हिंदी की है। एक तरह से कहें तो अकादमिक जगत में आतंक पैदा करने वाली भाषा है वो। किताब में तीन यात्रा संस्मरण हैं तीनों ही यूरोप और भारत के अलग-अलग अनुभवों को बयान करते हैं। किताब शामिल निबंध सचमुच उच्चकोटि के हैं। यहां लेखक का गहरा एनालिसिस उन्हें एक उच्चकोटि का निबंधकार साबित करता है। संस्मरण खंड तो कमाल का है। बहुत ही सधा हुआ जीवन और लेखन के गहरे पर्यवेक्षण के बाद ही इस तरह के संस्मरण लिखे जा सकते हैं। शिवपूजन सहाय, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, हरिवंश राय बच्चन और नलिन विलोचन शर्मा के जीवन और लेखन दोनों पक्ष इन संस्मरणों में बहुत खूबसूरती से उजागर हुए हैं। संकलन में ‘चुनकी’ और मीना ठाकुर’ नामक दो रेखाचित्र भी हैं। दोनों ही हाशिये के समाज के पात्र हैं जिनकी बेचारगी और नियति के कई प्रसंग पढ़ने वाले को सिहरा कर रख देते हैं। ‘आत्म वितरण’ और ‘घघ्घो रानी!कितना पानी?’ दो कहानियां हैं। हालांकि इनका ट्रीटमेंट सामान्य ही है लेकिन यह एक आलोचक की सोच को समझने में मदद करती है। संकलन में विमल जी की 15 कविताएं हैं। कविता लेखन उन्होंने आरंभिक दिनों से लेकर अंतिम दिनों तक किया। हालांकि इसमें उनकी जो कविताएं हैं वो कोई खास इप्रेशंस नहीं जगातीं। ‘टीप और टीपें’ में आदर्श वाक्य की तर्ज पर की गई उनकी टिप्पणियां हैं। एक जगह लेखक लिखता है, ‘शिक्षा केवल साक्षरता नहीं है और जीविकोपार्जन का एक स्रोत भर है। भौतिक दृष्टि से भी देखें तो शिक्षा इन तीन प्रकार के अर्जनों का साधन है-विद्यार्जन, जीविकोपार्जन और स्नेहार्जन। इसलिए शिक्षा सभ्यता और शिष्टता का दिखाउ ‘काकुल’ नहीं है।’

यह संकलन कुमार विमल के सर्जनात्मक मानस के व्यापक फलक को उदघाटित करता है। यह बतलाता है कि विभिन्न विधाओं को देखने-आंकने का उनका नजरिया क्या था। साथ ही यह इस बात को भी प्रमाणित करता है कि उनके पठन-पाठन और विश्लेषण की नजर कितनी गहरी और पैनी थी।

किताबः रचना के विविध रंग (प्रतिनिधि रचनाएं)
लेखकः डा.कुमार विमल
पेजः 252
कीमतः400
प्रकाशकः जागृति साहित्य प्रकाशन, साईंस कालेज के सामने
अशोक राजपथ पटना 800006

सम्पर्क : हिंदी प्रकाशन, उपभवन, बिहार विधान परिषद पटना 800015 मोबाइल 9934002632

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