दीनानाथ मंगेशकर, इस नाम के बारे में आज का शायद ही कोई युवा झट से बता पाए। लेकिन उनके पांच बच्चों के नाम आज भारतीय फिल्मोद्योग के जरिए विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। लता मंगेशकर, मीना मंगेशकर, आशा भोसले, उषा मंगेशकर और पुत्र हृदयनाथ मंगेशकर के पिता दीनानाथ मंगेशकर पिछली शताब्दी के आरंभिक वर्षो में मराठी रंगमंच के एक सुपरिचित हस्ती थे।
अपने जमाने में मास्टर के रूप में मशहूर दीनानाथ मंगेशकर का जन्म गोवा के नजदीक मंदिरों के लिए मशहूर एक कस्बा पोंडा में 29 दिसंबर 1900 को हुआ था। उस शहर की विशेषताओं ने शुरू से ही उनके भीतर पारंपरिक कलाओं के संस्कार डाल दिए थे। वे अपने शुरुआती दौर में एक गायक के रूप में जाने गए। उस जमाने में किर्लोस्कर नाटक कंपनी का पूरे महाराष्ट्र में डंका बजता था। इस कंपनी के मालिकों ने किशोरावस्था में ही दीनानाथ मंगेशकर को अपनी संस्था में शामिल कर लिया। यह वही नाटक कंपनी थी, जिसमें बाल गंधर्व जैसे मशहूर रंगकर्मी काम किया करते थे।
दीनानाथ मंगेशकर ने इसी कंपनी में अभिनय करना आरंभ किया। कलकत्ता में उर्दू नाटक ताज-ए-वफा में अभिनय करने के लिए उन्हें काफी सराहना मिली। इस नाटक कंपनी ने द्वितीय विश्वयुद्ध के जमाने में मराठी शैलियों और उर्दू रंगमंच के मिश्रित प्रयोगों से जो लोकप्रियता अर्जित की, उसमें दीनानाथ मंगेशकर के अभिनय से और भी निखार आया।
बाद में दीनानाथ मंगेशकर अपने सहयोगियों के साथ इस नाटक कंपनी से अलग हो गए और उन्होंने संगीत नाटक मंडली बनाई। 1921 में बंबई में इस संस्था का गठन किया गया। इस मंडली की पहली प्रस्तुति शकुंतला थी, जिसे बेहद सराहना मिली। इस नाटक कंपनी की प्रमुख नाट्य भूमिकाएं दीनानाथ स्वयं करते थे।
यह वह जमाना था, जब हिन्दुस्तानी संगीत का गायन और मंचीय गायन को दीनानाथ मंगेशकर ने शास्त्रीय सम्मान दिया। अपने रंगमंचीय जीवन के अलावा उनका झुकाव उस जमाने के नए सिनेमा की ओर भी हो रहा था। उन्होंने बलवंत फिल्म कंपनी की स्थापना की। अपनी मृत्यु के कुछ वर्ष पूर्व ही उन्होंने इस फिल्म कंपनी के माध्यम से भक्त पुंडलिक नामक मराठी फिल्म पूरी की। इस फिल्म में उन्होंने स्वयं एक साधु की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म कंपनी के साथ-साथ उनका रंगमंचीय जीवन भी चलता रहा। वे कुछ समय के लिए ऐसे हो गए जैसे पूरी दुनिया उनकी मुठ्ठी में हो। पैसे खूब आते थे, लेकिन फिल्मों के आने के बाद नाटक कंपनियां खत्म होने लगीं। फिर एक दिन वह भी आया जब नाटकों के दर्शक कम ही नहीं खत्म हो गए। ऐसा होने की वजह से दीनानाथ मंगेशकर का आखिरी वक्त बड़ा कठिन गुजरा। इस समय वे बच्चों को पढ़ाकर अपना गुजारा चला रहे थे। पांच बच्चों का साथ और परिवार का बोझ चलाना कठिन हो गया था। आखिर में वे कम समय में ही, मात्र 41 वर्ष की उम्र में 24 अप्रैल 1942 को उनका निधन हो गया। हालांकि उनके निधन के बाद परिवार का सारा बोझ बड़ी बेटी लता मंगेशकर ने उठा लिया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी नाटक कंपनी और फिल्म कंपनी दोनों खत्म हो गई। लता ने अपने युवावस्था के दिनों में उनकी स्मृतियों को संजोने का अपने स्तर से प्रयास किया।
दीनानाथ मंगेशकर एक अच्छे गायक के रूप में मराठी रंगमंच की परवर्ती परंपरा में लंबे समय तक जीवित रहे। उनकी गायन शैली का प्रभाव बाद के रंगमंचीय गायकों के ऊपर भी लगातार पड़ा, बाद के लोग उस शैली को अपनाते हुए गर्व महसूस करते थे। उनकी आखिरी रंगमंचीय प्रस्तुति 1933 में सांगली में हुई। ब्रह्मकुमारी नामक इस नाटक की उस जमाने में काफी चर्चा हुई थी। बाद में इसी सांगली में मराठी रंगमंच के लिए समर्पित यह कलाकार आखिरी नींद सो गया। दीनानाथ को मराठी रंगमंच कभी नहीं भूलेगा..।
-रतन
दैनिक जागरण, 1 जनवरी 2012 अंक से साभार
Wednesday, January 4, 2012
जिनसे बढ़ा मराठी रंगमंच
Posted by Rangvarta Team
on 1:33 AM
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