धार, इंदौर, 14 दिसंबर 2011: आज भी अमेरिका और कई राष्ट्रों में सिनेमा हॉल के टिकट तो आसानी से मिल जाते हैंए किंतु नाटकों के टिकट कुछ माह पूर्व भी नहीं मिल पाते हैं। इसके ठीक विपरीत भारत के कुछ हिस्सों में रंगमंच को लेकर स्थिति बहुत चिंताजनक है जबकि यह एक जीवंत कला है। रंगमंच में कलाकार बड़ा और छोटा नहीं होता है। ये बातें जाने-माने रंगकर्मी व निर्देशक रंजीत कपूर ने कहीं।
शर्त और लज्जा से लेकर कई महत्वपूर्ण फिल्मों के लिए श्री कपूर ने संवाद व पटकथा लेखन का कार्य किया है। उन्होंने चर्चा में बताया कि हमारे यहाँ नई पीढ़ी को अभी भी रंगमंच के संस्कार नहीं दिए जा रहे हैं जबकि बेहद जरूरी हैं। फिल्में अच्छी.बुरी सभी तरह की बनती हैं। किस फिल्म को देखा जाए, यह दर्शक को ही तय करना होता है।
खास है नाटक : श्री कपूर ने बताया कि 15 दिसंबर को धार में 'आदमजाद' का मंचन करने जा रहे हैं, वह कई पहलुओं से विशिष्ट नाटक है। न्यूनतम साधन और 9 कलाकारों के माध्यम से हम ये प्रस्तुत करेंगे कि जो मानव सर्वश्रेष्ठ है, वह किस तरह से आज के युग में खराब हो गया है। उन्होंने बताया कि यह रचना विजयदान देथा की है, जो राजस्थान के लेखक हैं।
कम साधन से बड़ा काम : 15 दिसंबर को दूसरे दौर में 'पंच लाइट' नामक एक नाटक का मंचन करेंगे, जो कि फनीश्वर नाथ रेणु की रचना है। श्री कपूर ने कहा कि यह रचना बहुत पुरानी है किंतु आज भी लोगों को हँसाने.गुदगुदाने में कामयाब रहती है। हम लोग रंगमंच को प्रोत्साहन देने के लिए बहुत कम साधन और कम कलाकारों के साथ छोटे से छोटे कस्बे में नाटक प्रस्तुत कर रहे हैं।
श्री कपूर ने कहा कि आमतौर पर देखने में आया है कि लोग समय की कीमत नहीं करते और खासकर रंगमंच के कार्यक्रम को लेकर समय का ध्यान नहीं रखते। हम नाटक को समय पर शुरू करेंगे और समय पर ही खत्म करेंगे, इसलिए दर्शकों से आग्रह है कि वे समय पर पहुँचें।
------------------------------------------------------------------------------------------------गरूपिया और राष्ट्रीय नाट्य अकादमी के बैनर तले इन दिनों नाट्योत्सव का आयोजन किया जा रहा है। कल इसका पहला दिन था और इस दिन दो नाटक 'आदमजाद' और 'पंचलाइट' की प्रस्तुति दी गई।
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