RANGVARTA qrtly theatre & art magazine

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Friday, March 15, 2013

जोर-जबर्दस्ती के खिलाफ थिएटर आगे आये.



दारियो फो का संदेश: विश्व रंगमंच दिवस 2013
(इटली के व्यंग्यकार, नाटककार, नाट्य-निर्देशक, अभिनेता, संगीतकार, नोबल पुरस्कार विजेता)

बहुत समय पहले सत्ता ने कमेडिया दे ला आर्ट के अभिनेताओं को देश से बाहर निकाल कर उनके विरुद्ध अपनी असहिष्णुता को संतुष्ट किया. आज ऐसे ही संकट के कारण अभिनेताओं और थियेटर कंपनियों के लिए सार्वजानिक मंचों, प्रेक्षागृहों और दर्शकों तक पहुंचना कठिन हो गया है .शासकों को अब उन लोगों से कोई समस्या नहीं है, जो विडंबना और व्यंग्य की अभिव्यक्ति करते हैं क्योंकि न तो अभिनेताओं के लिए कोई मंच है और न ही दर्शक, जिसे संबोधित किया जा सके. इसके उलट पुनर्जागरण के दौर में इटली का सत्ताधारी वर्ग हास्य-व्यंग्य कलाकारों को दूर रखने के लिए विशेष प्रयास करने पर बाध्य हुआ क्योंकि ऐसे प्रदर्शन जनता में बहुत लोकप्रिय थे.

यह तो सर्वविदित है कि कमेडिया दे ला आर्ट के कलाकारों का बड़ी संख्या में बहिर्गमन सुधार्रों की गति को विपरीत दिशा में ले जाने वाली सदी में हुआ, जब सभी रंगकर्म स्थलों को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया . विशेष तौर पर रोम में, जहाँ उन कलाकारों पर पवित्र नगर को अपमानित करने का आरोप लगाया गया .1697 में पोप इनोसेंट बारहवें ने रूढ़िवादी बुर्जुआ पक्ष और प्रतिनिधि पादरी समूह के अड़ियल रवैये व लगातार बढ़ते दबाव में तार्दिनोना थियेटर को तोड़ने का आदेश दिया, जहाँ नैतिकवादियों के अनुसार सबसे अधिक अश्लील प्रदर्शन हुए.

सुधार के क्रम को उलट दिए जाने वाले समय में उत्तरी इटली मे सक्रिय कार्डिनल कार्लाे बोरोमियो ने ‘मिलान की संतानों को’ शैतान और पाप से बचाने के लिए कला को आध्यात्मिक शिक्षा का सबसे उच्च स्वरुप और थियेटर को धर्म विरोधी, ईश निंदा और अहंकार के प्रदर्शन का केन्द्र बताया. अपने सहयोगियों को लिखे एक पत्र के माध्यम से, जिसे मैं अनायास ही उद्धृत कर रहा हूँ, उसने अपने को कुछ इस तरह से अभिव्यक्त कियाः ‘‘शैतानी ताक़तों का विनाश करने के अपने सरोकारों को ध्यान में रखते हुए हमने घृणित संभाषणों से भरे पाठ्यांशों को जलाने, आम जनता की स्मृतियों से उन्हें मिटाने और साथ ही ऐसे लोगों पर जो इन पाठ्यांशों को प्रकाशित कर जनता तक पहुंचाते हैं अभियोग चलाने के सभी संभव प्रयास किये. फिर भी यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि जब हम आराम से थे, शैतान अपने नवीनतम षड़यंत्रों और चालाकियों के साथ पुनः सक्रिय हुआ. आँखें जो देखती हैं, वह इन किताबों को पढ़े जाने की तुलना में कहीं अधिक गहराई से आत्मा को प्रभावित करता है! किशोरों और युवतियों के मस्तिष्क के लिए किताबों में छपे मृत शब्दों से कितने अधिक विध्वंसकारी हैं उपयुक्त भाव-भंगिमाओं के साथ बोले जाने वाले शब्द. अतः अपने शहरों को थियेटर करने वालों से मुक्त कराना नितांत आवश्यक है ठीक उसी तरह जैसे हम अनचाही आत्माओं से पीछा छुड़ाते हैं.’>

इस तरह संकट का हल इसी आशा पर टिका है कि हमारे और युवा नाट्य प्रेमियों के निर्वासन की मुहिम चले तथा हास्य-व्यंग्य कलाकारों, रंगमंच की तामीर करने वालों को नया समूह उससे निश्चित रूप से अकल्पनीय लाभ तलाशे एवं इस जोर-जबर्दस्ती के खिलाफ नये प्रतिनिधित्व के रूप में आगे आये.

इन्टरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट आई0 टी0 आई0, पेरिस विश्व रंगमंच दिवसः 27 मार्च, 2013
हिंदी अनुवाद: अखिलेश दीक्षित

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