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Thursday, March 21, 2013

लिपिका दराई हमें तुम पर नाज है



जैसा कि अक्सर होता है. सेलिब्रेटी और बड़े नाम अपने आकार से नए और प्रतिभावान लोगों के रास्ते को संकरा कर देते हैं. लिपिका सिंह दराई के साथ भी ऐसा ही हुआ है. बारीपदा (उड़ीसा) की रहनेवाली 29 वर्षीय लिपिका को किसी निर्देशक की सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म (गैर फीचर) के लिए 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया है. यह पुरस्कार उन्हें उनकी डॉक्यूमेंट्री ओड़िया फिल्म ‘एक गाछ, एक मनुष्य, एक समुंदर’ के लिए दिया जाएगा. लिपिका सिंह दराई ने फिल्म इंस्टीट्यूट, पुणे से साउंड इंजीनियरिंग और ऑडियोग्राफी में विषेज्ञता हासिल की है और इन दिनों वह ओड़िसा के लोक व कठपुतली कला को डॉक्यूमेंट करने में लगी हुई है.

जबकि फीचर फिल्म की श्रेणी में यही पुरस्कार हिन्दी फिल्म ‘चिट्टागॉन्ग’ के निर्देशक बेदब्रत पेन तथा मलयालम फिल्म ‘101 चोदियन्गल’ के निर्देशक सिद्धार्थ सिवा को संयुक्त रूप से देने की घोषणा हुई है. लेकिन इरफान के शोर में लिपिका की सफलता दब कर रह गई है जिसने दूसरी बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता है. इससे पहले वह 2010 में हिंदी-मराठी फिल्म ‘गरूड़ा’ (वर्तनी) के लिए बेस्ट ऑडियोग्राफी का का 57वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुकी है.

लिपिका क्लासिकल संगीत की भी छात्रा रही है और वह एक बेहतरीन गायिका भी है. ओड़िसा, बालासोर के प्रफुल्ल कुमार दास उसके संगीत शिक्षक रहे हैं. अपनी इस राष्ट्रीय उपलब्धि पर वह कहती है, ‘यह फिल्म एक तरह से मेरे गुरु को श्रद्धांजलि है.’

निःसंदेह इरफान और जिन्हें भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले हैं, उनकी चर्चा जरूरी है. हम सब इरफान जैसे कलाकारों को चाहते हैं. लेकिन मीडिया ने जिस तरह से इस युवा निर्देशिका की उपेक्षा की है और कर रही है, उससे विश्वास करना मुश्किल है कि प्रतिभाओं की पूछ होती है. बीबीसी हिंदी ने भी अपने समाचार में अन्य भारतीय मीडिया की तरह उसका उल्लेख करना तक जरूरी नहीं समझा है.

मसला तब और गंभीर हो जाता है, जब कोई विजेता दमित-वंचित समुदाय से आता है. और यह महज संयोग नहीं है कि लिपिका आदिवासी है. वह ‘हो’ आदिवासी समुदाय की बेटी है. हमें नहीं मालूम उपेक्षा उसके आदिवासी होने की वजह से हो रही है या कोई और कारण है. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि जब शिवाजी चंद्रभूषण देवगम को 2007 में ‘फ्रोजेन’ के लिए निर्देशक की सर्वश्रेष्ठ पहली फीचर फिल्म का अवार्ड मिला था, तो मीडिया ने उन्हें भी कवरेज नहीं दिया था. देवगम भी ‘हो’ आदिवासी समुदाय से आते हैं और वे मूलतः चाईबासा, झारखंड के रहने वाले हैं. हो सहित समस्त आदिवासी समुदाय के को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाले इन दोनों निर्देशकों की उपलब्धि पर गर्व है.

ओड़िया मीडिया में लिपिका की खबरें हैं पर कोई भी उसके आदिवासी होने का उल्लेख नहीं कर रहा है. तो क्या यह मान लिया जाए कि लिपिका की उपेक्षा में उसका आदिवासी होना ‘ही’ या ‘भी’ है.

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