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Sunday, January 8, 2012

रंगमंच का सबसे बड़ा जलसा, नेपथ्य में हिन्दी प्रदेश



दिल्ली में आज से भारत रंग महोत्सव शुरू हो गया है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के तत्वावधान में आयोजित होने वाला यह समारोह रंगमंच का सबसे बड़ा नाट्य महोत्सव है। लेकिन इस समारोह में उस नगर की कोई हिस्सेदारी नहीं है जहां राज बिसारिया, मुद्राराक्षस, उर्मिल कुमार थपलियाल, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ जैसे बड़े रंगकर्मी और भारतेन्दु नाट्य अकादमी है। यही नहीं कई नाट्य संस्थाओं को केन्द्र सरकार द्वारा रंगमण्डल का वेतन अनुदान मिलता है और आए दिन नाट्य प्रस्तुतियां होती हैं।

भारंगम की आयोजक संस्था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा नाट्य प्रशिक्षण संस्थान भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ में है। यहां प्रतिवर्ष कई रंगकर्मी प्रशिक्षण प्राप्त करके निकलते हैं। संगीत के साथ ही नाटक को प्रोत्साहित करने वाली उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी का मुख्यालय भी इसी नगर में स्थित है। दर्पण, इप्टा, नीपा, मंचकृति, यायावर जैसी कितनी ही नाट्य संस्थाएं रंगमंच पर सक्रिय हैं लेकिन फिर भी इस नगर के रंगकर्म की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं बन पा रही है। भारंगम में 60 से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां हो रही हैं। मगर पिछले कुछ सालों से लखनऊ और उत्तर प्रदेश का इस उत्सव में उस प्रकार प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है, जिस प्रकार बंगाल, केरल, गुजरात, महाराष्ट्र या मणिपुर का होता है।

स्तर ऊंचा करना होगा: कुलश्रेष्ठ
भारंगम की चयन समिति के सदस्य व भारतेन्दु नाट्य अकादमी के पूर्व निदेशक और वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ कहते हैं कि इस वर्ष उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश मिलाकर पूरे हिन्दी प्रदेश का प्रतिनिधित्व ही निराशाजनक है। वास्तव इन क्षेत्रों में जो रंगकर्म हो रहा है उनका स्तर इस अनुकूल नहीं था कि उन्हें भारंगम में स्थान मिल पाता। इससे यह स्पष्ट है कि हिन्दी प्रदेश में अच्छा रंगकर्म नहीं हो रहा है। ऐसा नहीं है कि लखनऊ के साथ भारंगम में कोई अन्याय हो रहा है बल्कि सच्चाई यह है कि हमें लखनऊ के रंगकर्म के स्तर को बढ़ाना होगा।

बदल रहा भारंगम का परिदृश्य : थपलियाल
संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से सम्मानित वरिष्ठ नाटककार एवं निर्देशक उर्मिल कुमार थपलियाल कहते हैं कि शुरू में तो लखनऊ का प्रतिनिधित्व होता था लेकिन अब प्रतिनिधित्व घटा है। वास्तव में भारंगम का परिदृश्य ही बदल रहा है और विश्वव्यापी रंगकर्म को बढ़ावा दिया जा रहा है, स्थानीयता से जुड़ी प्रस्तुतियों का महत्व घटा है। अगर लखनऊ में अच्छा काम नहीं हो रहा तो यहां के रंगकर्मियों को नाट्य लेखन और निर्देशन के लिए संगीत नाटक अकादमी जैसे प्रतिष्ठित अवार्ड कैसे मिलते। यह नहीं कहा जा सकता कि लखनऊ की सारी प्रस्तुतियां अच्छी नहीं हैं। कुछ अच्छा काम तो हो रहा है, उसे शामिल किया जा सकता है।

अनुदान बढ़ा, स्तर घटा : राजेश कुमार
‘गांधी और अंबेडकर’ जैसे चर्चित नाटक के लेखक राजेश कुमार कहते हैं कि लखनऊ का रंगमंच राष्ट्रीय रंगमंच का हिस्सा क्यों नहीं बन पा रहा है यह विचारणीय प्रश्न है। इस बार भारंगम में रवींद्रनाथ टैगोर पर कई नाटक हो रहा है। हमारे नगर की नाट्य संस्थाओं को टैगोर की कृतियों पर आधारित नाटकों के लिए अनुदान मिले लेकिन ये प्रस्तुतियां चयनकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर सकीं। एक समय था जब नाट्य संस्थाएं पैसे का रोना रोती थीं लेकिन आज खूब अनुदान मिल रहा है। राजधानी में होने वाले 80 फीसदी नाटक अनुदान से हो रहे हैं लेकिन आज स्तर घटता जा रहा है। किसी समय लखनऊ के ‘रामलीला’, ‘आला अफसर’, ‘हरिश्चन्नर की लड़ाई’ जैसी नाट्य प्रस्तुतियों ने राष्ट्रीय स्तर पर लोगों को चौंकाया था, आज वह बात नहीं दिखती है।

वे वेतनशुदा अभिनेता कौन हैं
राजधानी में ऐसी कई संस्थाएं हैं जिन्हें केन्द्र सरकार के संस्कृति विभाग से रंगमण्डल का वेतन अनुदान मिलता है। इनमें जितेन्द्र मित्तल, ज्ञानेश्वर मिश्र ज्ञानी, प्रभात कुमार बोस की अगुआई वाली संस्थाएं शामिल हैं। इस लिहाज से राजधानी में करीब 35-40 ऐसे अभिनेता हैं जो बकायदा वेतन पाते हैं। लेकिन ये कौन लोग हैं, ये किस प्रकार का पेशेवर काम कर रहे हैं, राष्ट्रीय स्तर पर इनके बारे में लोगों की क्या राय है, यह कोई नहीं जानता। प्रसिद्ध रंगकर्मी राज बिसारिया और युवा रंगकर्मी आनंद प्रहलाद की संस्थाओं के लिए भी इस वर्ष वेतन अनुदान स्वीकृत हुआ है।

पूर्व में हुआ है प्रतिनिधित्व
वैसे पूर्व में कई बार लखनऊ की नाट्य संस्थाओं की प्रस्तुतियां भारंगम में हिस्सा ले चुकी हैं। नीपा चार बार भारंगम में जा चुकी है। मंचकृति, दर्पण की प्रस्तुतियां भी भारंगम में हो चुकी हैं। राज बिसारिया, उर्मिल कुमार थपलियाल, सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ, पुनीत अस्थाना, जितेन्द्र मित्तल के निर्देशन में इस समारोह में कई नाटक हो चुके हैं। दर्पण ने वर्ष 2008 में ब्रेख्त पर आधारित ‘हमारे समय में तुम’ का मंचन किया था।

(अमर उजाला, लखनऊ 8 जनवरी से साभार)

1 comments:

Rajkumar Rajak said...

स्तर ऊंचा करना होगा: कुलश्रेष्ठ
भारंगम की चयन समिति के सदस्य व भारतेन्दु नाट्य अकादमी के पूर्व निदेशक और वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ कहते हैं कि इस वर्ष उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश मिलाकर पूरे हिन्दी प्रदेश का प्रतिनिधित्व ही निराशाजनक है। वास्तव इन क्षेत्रों में जो रंगकर्म हो रहा है उनका स्तर इस अनुकूल नहीं था कि उन्हें भारंगम में स्थान मिल पाता। इससे यह स्पष्ट है कि हिन्दी प्रदेश में अच्छा रंगकर्म नहीं हो रहा है। ऐसा नहीं है कि लखनऊ के साथ भारंगम में कोई अन्याय हो रहा है बल्कि सच्चाई यह है कि हमें लखनऊ के रंगकर्म के स्तर को बढ़ाना होगा।

Iiis statment par main bahut hee mazbuti se yah kahna chahoonga SHRI KULSHESTHA sir se ki Uttar Pradesh MEIN Lucknow ke pas hee Allahabad padta hai sir, yahan yesa rangmanch pichye 3 salon se sakriya hai jo BHARAT RANG MAHOTSAV mein hissedari bhi kar raha hai aur iiski anterrashtriya gudwatta bhi hai. to mujhe lagta hai ki yese statment se pahlye iitihas ke bharose statement na diya jaye aur VARTMAAN par bhi nazar dala jaye.
Jahan tak Rajasthan ki bat hai to Jaipur se lagbhag 8 ghantye ki duri par BIKANER hai jahan Rangmanchiya gudwatta itni hai ki iis rangmanch ko anterrashtriya star par tulna kiya japayega.

Rajkumar Rajak

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