RANGVARTA qrtly theatre & art magazine

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Saturday, January 28, 2012

उदास और रहस्मय सौंदर्य


भारत रंग महोत्सव में शनिवार को हुई प्रस्तुति ‘वाटर स्टेशन’ की विशेषता उसकी विलक्षण धीमी गति है। यह एक ऐसी गति है जो स्थिरता की दोस्त मालूम देती है मंच के बाएं छोर की ऊंचाई पर प्लेटफॉर्म से एक रास्ता शुरू होता है। एक मोड़ लेकर यह रास्ता स्टेज के मध्य तक पहुंचता है। यहां तक पहुंचता है। यहां एक नल लगा है जिससे लगातार पानी बह रहा है। यह जगह एक पड़ाव है। यात्रियों का रास्ते से आना और नल से पानी पीना- यही प्रस्तुति का कथ्य है।

इसमें एक उपकथा भी है दाएं किनारे पर कबाड़ का ढेर है, जहां एक किरदार बिल्कुल स्थिर खड़ा ये गतिविधियां देख रहा हैं प्रस्तुति में कोई संवाद नहीं है। दर्शक कुछ न होने को देख रहे हैं। कुछ न होना शायद उन्हें किंकर्तव्यविमूढ़ बना रहा हो, पर इसमें एक बड़ी राहत है। हर गतिविधि को पूरे विस्तार से महसूस करने का इत्मीनान। निर्देशकीय से शब्द उधार लें तो ‘यह खामोशी’ धीमापन और स्तब्धता- ये सब मिलकर एक उदास और रहस्यमय सौंदर्य की रचना
करते हैं, जो हमें अपने जीवन और अस्तित्व को देखने के लिए एक नई दृष्टि देता है।’

स्लोमोशन दर्शक को अचानक एक नए समय बोध में ले जाता है। समय के हर टुकड़े की बहुत सी कोशिकाएं हैं। नल की ओर हाथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। धार मुंह में जाने से गिर रहे पानी की आवाज रुक गई हैं। आवाज का रुकना भी दृश्य की एक गतिविधि है।.... कई तरह के पात्रा रह-कर उपस्थित होते हैं। एक औरत आती है, एक बच्चागीड़ी लिए दंपत्ति,... पीठ पर टोकरी बांधे एक कामगार औरत।

जापानी नाटककार शोगो ओटो लिखित यह प्रस्तुति एक त्रायी का हिस्सा है। शेगो के बारे में उल्लेखनीय है कि वे 14वीं सदी के जापानी सौंदर्यर्शास्त्राी जियामी मोटोकियो की अकर्मकता की अवधारणा से प्रेरणा लेते रहे हैं। केरल के थिएटर ग्रुप थिएटर रूट्स एंड विंग्स के लिए इस प्रस्तुति का निर्देशन शंकर वेंकटेश्वरन ने किया है। उनके मुताबिक इस प्रस्तुति में धीमापन ‘पात्रों की आदि छवियों’ और ‘मानव अस्तित्व के सार’ को समझने में मददगार है। एक दृश्य में पति-पत्नी के अंतरंग क्षणों का एक टुकड़ा भी है, जो धीमेपन को थोड़ा बाधित करता है’

शनिवार को ही कमानी प्रेक्षागृह में बांग्ला प्रस्तुति ‘ब्योमकेश’ का मंचन किया गया। ब्योमकेश शारदेंदु बंद्योपाध्याय रचित बांग्ला साहित्य का प्रसिद्ध जासूसी किरदार है। इस प्रस्तुति में वह एक हत्या की गुत्थी को सुलझाता है। हत्यारे ने बहुत तरकीब से जायदाद के लिए हत्या की, लेकिन कुछ हल्की-फुल्की चूकें उसे ले डूबी। नाटक की विधा में यह जासूसी का एक सीधा-सादा नैरेटिव है। साहित्यिक उत्सुकता थिएटर के लिए कोई बहुत उपयोगी चीज नहीं मानी जाती।

ब्योमकेश के रहस्योदघाटनों में कोई बड़ा रोमांच नहीं है। बल्कि अपनी सादगी में यह प्रस्तुति एक नॉस्टैल्जिक रूमान पैदा करती है। बृत्य बसु निर्देशित इस प्रस्तुति मेें कुछ अपने किस्म के खांटी किरदार है, और हत्या उसमें सिर्फ लालच की वजह से नहीं बल्कि नफरत की वजह से भी की गई है।

- संगम पांडेय

जनसत्ता, 17 जनवरी 12012

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