सत्यव्रत राउत की बातों में कितना असत्य है. इसका एक और उदाहरण ‘मत्ते एकलव्य’ या ‘एकलव्य उवाच’ के नाटककार का नाम है. जब हमने उनसे सवाल किया कि आपने आदिवासी एकलव्य को दलित क्यों बताया तो गोल-गोल जवाब के बाद यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि आप अपना सवाल निर्देशक से नहीं बल्कि नाटककार कुलदीप कुणाल से करें. उन्होंने कुलदीप का फोन नंबर भी कमेंट में डाल दिया. असत्यता की हद यह है कि ‘मत्ते एकलव्य’ का लेखक कब कुलदीप कुणाल हो जाता है और कब वे स्वयं, कहना मुश्किल है.
सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का मेटा अवार्ड जीतने के बाद daily Pioneer को दिए गए वक्तव्य में उन्होंने कहा है कि वे स्वयं इस नाटक के लेखक हैं और जिसे उन्होंने अपने दिल्ली के एक छात्र के साथ मिलकर लिखा है. The script was written by me and one of my students in Delhi. (लिंक) ध्यान दीजिए वे लेखक का नाम नहीं ले रहे हैं. कह रहे हैं एक छात्र.
इसी तरह जब वे जुलाई 2011 में कोलंबिया जाने की तैयारी कर रहे थे तब इस संबंध में एक प्रेस-कॉन्फ्रेंस में भी उन्होंने एकलव्य का नाट्यालेख खुद लिखने की बात कही है. It is scripted and directed by Satyabrata Raut, acclaimed playwright ... (लिंक) मतलब जब पुरस्कार, पैसा और नाम की बात हो तो वे खुद इसके स्क्रिप्ट राईटर हो जाते हैं और जब नाटक पर सवाल उठता है तो वे अपने निरीह छात्र को अपनी ढाल बना लेते हैं. यही नहीं, जब नाटक के जरिए खुद को भीड़ भरे ट्रैफिक से निकाल कर आगे ले जाना हो तो इसके कन्नड़ रूपांतरकार के. रामैया जैसे प्रतिष्ठित और साहित्य अकादमी से सम्मानित दलित लेखक हो जाते हैं.
1 comments:
बेहद गंभीर आरोप हैं| उम्मीद करता हूँ सत्यव्रत राउत साहब इसका कहीं जवाब देंगे ताकि हम सभी का विश्वास रंगकर्मियों पर बना रहे|
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