RANGVARTA qrtly theatre & art magazine

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Saturday, January 14, 2012

थिएटर का पापा लादेन शो


भांरगम 2012 में मंचित नाटकों पर ‘जनसत्ता’ में संगम पांडेय लिख रहे हैं. ‘रंगवार्ता’ के साथियो के लिए साभार प्रस्तुत है ‘पापा लादेन’ और ‘नैन नचैया’ पर उनकी रंग टिप्पणी. //

पिछले सत्र में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक हुए आंध्र प्रदेश के सुमन मेलिपेड्डी निर्देशित प्रस्तुति ‘पापा लादेन’ का आइडिया काफी दिलचस्प है। भारत रंग महोत्सव में शामिल विद्यालय की इस डिप्लोमा प्रस्तुति में पात्र किसी कार्टून फिल्म की तरह मौजूद है। शरीर की तुलना में ज्यादा बड़े कूल्हों वाली और हर समय खीखियाई रहने वाली चोंगा पहने पत्नी, बिगड़ा हुआ नौकर मालूम देता उसका पति, और तरह-तरह की व्याधियों से ग्रस्त पापा।

पापा एक बेंच पर पेट में पांव घुसाए लेटा रहता है। उसे ग्लूकोज की बोतल लगी है। तरह-तरह की नालियां उसके शरीर से बंधी है। जांघिए से निकलती एक नली पेशाब की थैली से जुड़ी है। पापा लादेन इस थैली को पकड़े हुए झुककर चलता है। परेशान हाल वह जिंदा बने रहने का ध्येय से कई स्तरों पर जूझ रहा है। इसके अलावा वहीं पास में एक बच्चागाड़ी खड़ी है, जिससे बीच-बीच में बच्चे के रोने की आवाज आती है।

भाषा के नाम पर अजीबोगरीब स्वर है। एक मौके पर अखबार की एक तस्वीर को देखकर बेकाबू हुआ पति ‘नंगी स्त्री अस्ति’ बोलता है। पत्नी उसे डपटकर खींच लाती है और फिर जिस बीच वे प्यार में खटाखट लिपट रहे हैं, पापा उस सुंदर स्त्री वाली तस्वीर में मुंह घुसाए हुए है। अखबार फाड़कर निकल आई उसकी जीभ दर्शकों को दिखती है। बीच-बीच में पापा लादेन ग्लूकोज की नली को माइक की तरह पकड़ कर भाषण भी देने लगता है। एक मौके पर तीनों रॉक स्टार बन जाते हैं। लेकिन एक अन्य मौके पर पति को गुस्सा आ जाता है और वह पापा को उठाकर पटक देता है, उसकी नलियां हटा देता है, पकड़ी हुई थैली कुचल देता है। वह इतना गैरजिम्मेदार भी है कि बच्चे का दूध खुद पी जाता है। रात में सोते वक्त थकी हारी सोई बीवी की टांग पर उसकी टांग चली गई है। नींद से हड़बड़ा कर जागी बीवी के धक्के से वह गिर पड़ा है। लेकिन एक दूसरे मौके पर वह चीरहरण करने पर उतारू है। उसका स्वर रामलीला के रावण जैसा हो गया है। वस्त्र की जगह वह टॉयलट पेपर खींचे जा रहा है। यह एक थिएटर का ‘पापाय शो’ है, जिसमें मध्यवर्गीय परिवार के सदस्य ‘एनिमेटेड’ हास्यचित्र के तौर पर दिखाई देते हैं। सुमन मेलिपेड्डी ने इसमें कुछ अच्छे फिलर भी डाले हैं।

पापा लादेन हालांकि मूलतः इजराइली प्रस्तुति ‘ओडिसस के ओटिकस’ से प्रेरित है, लेकिन उस प्रेरणा के दायरे में यह पर्याप्त देशज, मौलिक और सुघड़ रूपांतरण है। इसमें एक अपनी ही गति और पैनापन है। हिंदुस्तानी जिंदगी की कई रूढ़ियां, हड़बड़ी और बदहवासी इसमें शामिल है, और बेबाक व्यंग्य। कुछ गिमिक्स और रंग बिरंगी वेशभूषा भी प्रस्तुति को अपने तरह से एक आकार देती है।

सोमवार को अभिमंच प्रेक्षागृह में फरीद बज्मी निर्देशित भोपाल के थिएटर ग्रुप रंग विदूषक की प्रस्तुति ‘नैन नचैया’ भी देखने को मिली। यह एक संस्कृत प्रहसन पर आधारित प्रस्तुति थी, जिसमें रंग विदूषक की देहगतियों पर आधारित शैली स्पष्ट दिखाई देती है। यह उसी परिपाटी का प्रहसन है जिसमें एक चतुर और बाकी सब मूर्ख हुआ करते हैं।

इस प्रहसन के चतुर घोटालू बाबा को उसकी बीवी ढूंढ़ रही है, पर याददाशत खोने के बहाने वह यहाँ-वहाँ भक्तिनों पर डोरे डालता फिर रहा है। नाटक में एक राजा है जो उछलकर अपने सेवकों की गोद में लेट जाता है। उसका विदूषक दो डंडो पर बनी खड़ाऊं पर चलता है। सैनिक चेहरे को सलेटी रंग से रंगे और उस पर काले रंग से मूंछे उकेरे हुए हैं। सबकी पोशाकों में पीला रंग प्रधान है। गाना भी है-ढूंढ़ों जी... ढूंढ़ों जी...।

सरल हृदय दर्शकों में रस-संचार के लिए प्रस्तुति में काफी कुछ है। लेकिन वस्तुतः यह पुराने किस्म के टोटकों और साहित्यिकता में प्रसन्न एक ढांचा है। मूल कथा लीक से इधर-उधर के बहुतेरे प्रसंग हैं। प्रस्तुति में युवा अभिनेताओं के उत्साह के बरक्स एक कच्ची नाटकीयता है। सिखायापन इसमें साफ दिखता है।

संगम पांडेय

जनसत्ता, 11 जनवरी 2012 से साभार

1 comments:

naresh said...

MY BEST WISHES TO THE ENTIRE RANGVARTA TEAM WHICH GIVES A COLLECTIVE INFORMATION ABOUT THE ACTUAL THEATRE MOVEMENT OF INDIA.
NARESH CHANDER LAL
DIRECTOR
ANDAMAN PEOPLE THEATRE ASSOCIATION (APTA)
(THE ONE AND THE ONLY NATIONAL SCHOOL OF DRAMA NEW DELHI DIRECTION GRADUATE OF ANDAMAN & NICOBAR ISLANDS)

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