RANGVARTA qrtly theatre & art magazine

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Wednesday, July 4, 2012

एक थाली में खाते हैं राम और अली


रमेश शुक्ला 'सफर', अमृतसर दिन : सोमवार समय : दोपहर के दो बजे स्थान : अमृतसर का विरसा विहार
दोपहर के खाने के लिए जैसे ही अंतरराष्ट्रीय थियेटर वर्कशाप में आधे घंटे का अवकाश होता है, वर्कशाप में हिस्सा लेने वाले आर्टिस्ट एक साथ खाना लेने के लिए लाइन में खड़े हो जाते हैं। लाइन में कोई हिंदू है, कोई सिख है तो कोई मुसलमान या फिर ईसाई। कोई जाति-पाति का भेद नहीं, सभी एक साथ लाइन में खाना लेते हैं और एक साथ खाने के लिए बैठ जाते हैं। खाने का स्वाद तब और बढ़ जाता है जब किसी थाली में एक साथ भारत काराम तो पाकिस्तान के अली निवाला तोड़ते हैं। कहीं बिहार के सचिन और पंजाब के हैरी संधू तो कहीं स्वलेंजी और सुखजीत सिंह एक ही थाली में पेट पूजा में जुटे हैं। 'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना' किसी शायर की लिखी यह चंद लाइनें इन्हीं के लिए शायद लिखी गई होंगी। दैनिक जागरण से बातचीत में पाकिस्तान के मोहम्मद कैसर अली कहते हैं कि वह पिछले करीब एक महीने से वर्कशाप में हैं। ऐसा लगता ही नहीं है कि वह अपने देश में नही है। यहां सभी लोगों से लगाव हो गया है। सुनील, गुरजीत सिंह, रामकुमार, जतिंदरपाल, अशोक, अभिषेक, दिनेश आदि कई लोग हैं जिनके साथ इतने कम समय में घुलमिल गया। पता ही नहीं चलता कि अमृतसर में हूं या लाहौर में। रंगमंच से सीखा है कि मजहब से बड़ी इंसानियत है। आज अगर अलग-अलग मजहब के होते हुए भी एक थाली में खाना खा रहे हैं तो यह इंसानियत की जीत है। खुशी है कि रंगमंच हमेशा दो दिलों को जोड़ने की बात करता है। मजहब की बड़ी-बड़ी बाते करने से पहले एक अच्छा इंसान बनना होगा। कैसर कहता है कि सीमाओं की कंटीली तारें अवाम का दर्द नहीं समझती। बेजान तारें दोनों देशों को अलग करती हैं। दोनों देशों के युवा नफरत से ऊब चुके हैं, वे प्यार और सुकून चाहते हैं। गोलियां कहीं भी चले, राकेट, मिसाइल किसी भी देश में गिरे नुक्सान तो अवाम को ही उठाना पड़ेगा। वर्कशाप में हिस्सा लेने सचिन, गुरजीत सिंह, बलजिंदर, अमनदीप, गुरप्रीत कहते हैं कि रंगमंच ऐसा मंच है जहां भेदभाव, ऊंच-नीच नहीं होता। कलाकार की न कोई जाति होती है और न ही वह किसी एक संप्रदाय से बंधा ही रह सकता है। वर्कशाप पांच जुलाई को खत्म होगी। (दैनिक जागरण से साभार)

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