जर्मनी के हर्जोगटम लाऊएनबर्ग जिले, जिसे डची ऑफ लाऊएनबर्ग के नाम से भी जाना जाता है, में ग्रीष्म ऋतु हर साल अपने साथ उत्सवों का माहौल लेकर आती है। इन उत्सवों का संस्कृति तथा प्रकृति से गहरा संबंध है। ‘कुलतरसोमर एम कनाल’ नामक एक उत्सव वर्ष 2006 से यहां हर वर्ष आयोजित किया जा रहा है।
इस उत्सव का खास आकर्षण एक रोविंग थिएटर (पानी में बहता रंगमंच) है जिसमें दर्शकों को स्कालसी नहर में एक दृश्य से दूसरे दृश्य तक नाव को खेते हुए जाना पड़ता है। यह स्थान ऐतिहासिक कस्बे रात्जबर्ग के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। फैस्टीवल के डायरैक्टर फ्रैंक डयूवैल के अनुसार, ‘‘यह उत्सव केवल लाऊएनबर्ग में ही आयोजित हो सकता है क्योंकि यहां प्रकृति तथा भूदृश्य उत्सव की विषय वस्तु को तय करते हैं। झीलें, जंगल तथा स्थान हर चीज अपनी कहानी कहती है जबकि संगीत, रंगमंच तथा चित्र उन्हें जरा विस्तार से समझाते हैं।’’
1300 वर्ग किलोमीटर में फैले हर्जोगटम लाऊएनबर्ग जिले का नाम मध्यकाल के डची (सामंती इलाका) ऑफ साक्स-लाऊएनबर्ग पर पड़ा है। 1864 में दूसरे स्क्लेसविग युद्ध के पश्चात इस पर फारस का कब्जा हो गया और 1876 में इसे जर्मनी के उत्तरी राज्य स्क्लेसविच-होल्सटाइन में शामिल कर लिया गया। हैम्बर्ग शहर के करीब स्थित डची ऑफ लाऊएनबर्ग की 48 झीलें तथा साकसेनवाल्ड का विशाल जंगली क्षेत्र प्रकृति की सुंदरता को निहारने के इच्छुक पर्यटकों में बेहद लोकप्रिय है।
हालांकि ग्रीष्म ऋतु में यहां की रईस संस्कृति की झलक पेश करते विभिन्न स्थानों को भी देखा जा सकता है। इनमें वोटरसन का किला भी शामिल है। लाऊएनबर्ग जिले की राजधानी रात्जबर्ग की स्थापना 1143 में हुई थी। जल्द ही यह कस्बा हैनरी द लायन के शासन का हिस्सा बन गया जिन्होंने 1165 में यहां रोमनेस्क्यू गिरजाघर का निर्माण करवाया। यह ऐतिहासिक गिरजाघर पुराने कस्बे के उत्तरी हिस्से में स्थित है। इसी गिरजाघर के प्रांगण में ए.पॉल वैबर म्यूजियम भी स्थित है। इस म्यूजियम में 300 लिथोग्राफ्स (पाषाण से उकेरे चित्र या लेख), ड्राइंग्स तथा ऑयल पेंटिंग्स प्रदर्शित हैं।
म्यूजियम में प्रदर्शित ऑयल पेंटिंग्स के कलाकारों में से अधिकतर को रात्जबर्ग के निकट स्थित एक छोटे से गांव स्करेत्सटेकेन में रहते थे। जुलाई महीने के अंत में यहां आयोजित होने वाला रासेसबर्ग बाइलाग मिडेवियल नामक रंगारंग उत्सव पर्यटकों का खूब मनोरंजन करता है जहां वाइकिंग, रोमन, नोर्मन तथा अन्य लड़ाकू वेशभूषाओं में सजे कलाकार लड़ाइयों के नकली दृश्य पेश करते हैं। यहीं एक कस्बे मोएलन में टिल यूलैनस्पीगल नामक एक मसखरा बहुत लोकप्रिय है। कुछ का मानना है कि यह महज एक काल्पनिक व्यक्तित्व है परंतु आज भी यहां के कई लोग मानते हैं कि यह नटखट तथा शरारती व्यक्ति वास्तव में हुआ करता था।
मान्यता के अनुसार सन् 1350 में मोएलन में उसकी मौत प्लेग के कारण हुई थी। वह लोगों का मजाक उड़ाने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देता था जिसमें वह उनकी बुराइयों, लालच तथा मूर्खता को उजागर करता था। मोएलन में वह हर कहीं दिखता है जहां टिल यूलैनस्पीगल म्यूजियम भी स्थित है। यहां एक स्थान पर उसकी प्रतिमा भी स्थापित है। मान्यता है कि इसे एक साथ दोनों तरफ से रगडऩे पर भाग्योदय होता है। इस कस्बे में प्रत्येक तीन साल पर यूलैनस्पीगल उत्सव का आयोजन भी होता है। यह उत्सव इस साल भी आयोजित हो रहा है जो 9 से 18 अगस्त तक चलेगा।
पंजाब केसरी से साभार
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