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Saturday, April 7, 2012

रंगमंच के जरिये दर्शकों को देती हूं सीख: इरम खान


कभी तेज तर्रार बहू तो कभी उमराव जान के किरदार की तैयारी. बचपन से ही कलाकार बनने का सपना देखा करती थी.
नवाबी शहर लखनऊ के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी इरम खान समाज को नई दिशा देने का बीड़ा उठाते हुए रंगमंच के माध्यम से एक्टिंग के क्षेत्र में उतरी. इरम बताती हैं कि मुझे बचपन से ही एक्टिंग का बहुत शौक था. जब मैं 5वीं क्लास में थी तभी मैंने स्कूल से ही नाटकों में भाग लेना शुरु कर दिया. तभी मैने अपने अन्दर के कलाकार को पहचाना और दिल में रंगमंच पर उतरने की मन में ठान ली.


2010 में आकांक्षा थियेटर संस्था से जुड़ी रंगमंची इरम खान ने एक मुलाकात में बताया कि मेरा पहला नाटक 'पंच परमेश्वर' हुआ. इस नाटक का उद्देश्य दर्शकों को बताना था कि मित्रता से बढ़कर न्याय है. इस नाटक में मैंने समझू साहू की पत्नी सह आईना का किरदार निभाया. जो कि अवधी भाषा में दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया गया.

अपना कौन सा नाटक दोहराना चाहती है.

वैसे तो मेरे सारे ही नाटक बहुत अच्छे है. पर मै ”बेटों वाली विधवा“ दोहराना चाहूँगी.

क्या कोई हास्य नाटक किया है.

हां मेरा हास्य नाटक बल्लभपुर की रूपकथा बाल्मीकि रंगशाला उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी परिसर, गोमती नगर लखनऊ में हुआ था. इसमें एक भुतहा हवेली की कहानी थी जो एक छंदा साबुन की फैक्ट्री के मालिक खरीदना चाहते थे. उसमें मैने साबुन फैक्ट्री के मालिक की बेटी वृंदा का किरदार निभाया था.

मंत्र नाटक में क्या किरदार निभाया था.

मंत्र में मैने डाक्टर चढढा के बेटे कैलाश की होने वाली पत्नी मृणालिनी की भूमिका निभाई है. मुंशी प्रेमचन्द्र ने उच्च वर्गीय समाज के डाक्टरों के लिए कटाक्ष किया है. उन्होंने दर्शाया है कि भगवान का न्याय सबके लिए समान है. इंसान को कभी इंसानियत से नहीं हटना चाहिए. मंत्र नाटक ने समाज को एक अच्छा संदेश दिया है.

”बेटो वाली विधवा“ में दर्शकों को क्या सीख मिली.

दर्शको को इस नाटक से बेहतर संदेश मिला है कि एक मां-बाप अपने चार-चार बेटों को पालते है. वहीं बेटे बड़े होकर अपनी विधवा मां को बोझ समझने लगते है. इस नाटक में मैने एक तेज-तर्रार बड़ी बहू का किरदार निभाया था जो अपनी सास को बहुत तंग करती है.

अगर रंगमंच कलाकार न होती तो क्या बनना चाहती.

अगर मैं रंगमंच कलाकार न होती तो मै पुलिस इंस्पेक्टर जरूर होती. और समाज कीर सेवा करती और महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को जड़ से खत्म करने की कोशिश करती.

समाज के लिए क्या करना चाहेंगी.

मैं एक बालिका कालेज खोलना चाहूंगी जिससे गरीब बालिकाओं को निःशुल्क शिक्षा, हास्टल सुविधा और जितनी सुख सुविधाएं है उन्हे मिल सके ऐसा जरूर चाहूंगी.

न्यू जेनरेशन के लिये

हमेशा अपनी सोच पाजिटिव रखनी चाहिए. जिन्दगी बहुत खूबसूरत है बस उसके लिए खूबसूरत नजरिए की जरूरत होती है. यह आज की जेनरेशन के दिमाग में डालने की जरूरत है. काम बहुत है... अवसर बहुत है. बस जरूरत है सही रास्ते को चुनकर आगे बढ़ने की. और न्यू जेनरेशन से यही कहना चाहूंगी जो किसी शायर ने कहा है.

परों को खोल जमाना उड़ान देखता है.
जमीं पर बैठकर क्या आसमान देखता है.

सभी अभिभावकों को क्या संदेश देना चाहते है.

मैं अभिभावकों से बस यही कहूंगी कि वो ये देखे कि बच्चे को किस चीज में रूचि है. वो क्या करना चाहता है. उसे वही करने दे, जबरदस्ती वो काम करने को न कहे जो वो न करना चाहते हो. मेरी मां ने भी मेरी एक्टिंग में रूचि देखकर मुझे कभी नहीं रोका. वह हमेशा आगे बढ़ने के लिए हमारी प्रेरणा स्रोत रही.

पढ़ने वाले बच्चों के लिए मनोरंजन के साधन को कैसा मानेंगी? सही या गलत.

मैं मनोरंजन को गलत नहीं बल्कि सही मानूंगी क्योंकि बच्चों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ मनोरंजन और खेलकूद बहुत जरूरी है. टेलीविजन तो बहुत अच्छा साधन है मनोरंजन का.

पसंदीदा टीवी सीरियल कौन सा है.

वैसे तो सारे ही सीरियल्स बहुत ही अच्छे है पर मेरा पसंदीदा सीरियल सहारा वन का "सितारों का आंगन होगा". जोकि मै रोज देखती हूं. इसके अलावा ”प्रतिज्ञा“ है. इससे न्यू जेनरेशन की सोच बदली है और हर लड़की किसी से पीछे नहीं रहना चाहती बल्कि हर परिस्थिति का सामना करना सीख रही है.

आने वाले नाटक के बारे में कुछ कहना चाहेंगी.

अभी मैं फिलहाल अपने आने वाले नाटक ”उमराव जान अदा“ की रिहर्सल कर रही हूं जिसमें मैने ”उमराव जान“ का किरदार निभा रही हूं. जो कि अप्रैल में लखनऊ के राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में होगा.

(समयलाइव से साभार)

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