शहर गोरखपुर के रेलवे स्टेशन से बमुश्किल डेढ़ किमी दूर, गर्मियों की सुबह में किशोरवय के कुछ शौकिया रंगकर्मी बरगद के दो विशाल वृक्षों को जोड़कर बनाए गए मिट्टी के अस्थायी मंच पर झाड़ू लगा रहे हैं. पेड़ों के तनों से बांधकर परदा लगाया जा रहा है और मंच से नीचे खिचड़ी दाढ़ी और बालों वाला एक शख्स छोटी-सी मेज पर एक महिला की तस्वीर सजाते हुए अचानक अपनी नम आंखें साफ करने लगता है.
पीछे से कोई लड़का पूछता है, ''दादा! ये तो रिकॉर्ड होगा. इतना लंबा टाइम तक कोई और नाटक थोड़े किया होगा?'' दादा घूमकर उसे देखते हैं, ''डायलॉग याद करो. ऐ चक्कर में मत पड़ो कि रिकॉर्ड बना है.''
दादा यानी 55 बरस के के.सी. सेन के लिए यह रिकॉर्ड भले ही रोमांच भर देने वाली बात न हो, लेकिन जरा सोचिए कि अगर कुछ रंगकर्मी पिछले 19 सालों से हर शनिवार सुबह बिना क्रमभंग के नाटक कर रहे हों तो क्या यह बड़ी बात नहीं है? कड़ाके की धूप, ठंड या बारिश कुछ भी हो, ये सिलसिला पिछले 1,000 हफ्तों से अनवरत जारी हो और वह भी इसलिए कि इस शहर को एक ऑडिटोरियम मिल जाए, जहां नाटक करने वाले अपनी प्रस्तुतियां कर सकें. क्या यह सचमुच 'कुछ खास' नहीं है?
हालांकि सेन से पूछिए तो वे अनसुना कर देंगे. उनके लिए ये सिलसिला अब एक लड़ाई में बदल चुका है. इसे जारी रखने के लिए रेलकर्मी सेन ने प्रमोशन से इनकार कर दिया क्योंकि तब उन्हें शहर से बाहर जाना पड़ता. 19 साल पहले जब विश्व रंगमंच दिवस के मौके पर उन्होंने इस आंदोलन का संकल्प लिया, तब उनकी पत्नी माला अपने दो नन्हे बच्चों के साथ हौसला अफजाई के लिए हर शनिवार यहां आती थीं. अब बड़ा बेटा कल्याण सेन नाटकों में अभिनय और निर्देशन कर देशभर के नाट्य महोत्सवों में पुरस्कार जीत रहा है मगर कैंसर से लड़ते हुए माला गत वर्ष चल बसीं.
1986 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री (अब दिवंगत) वीरबहादुर सिंह ने गोरखपुर में 5.4 करोड़ रु. की लागत से एक अत्याधुनिक प्रेक्षागृह व आर्ट गैलरी के निर्माण की घोषणा की थी. काम शुरू भी हुआ, लेकिन उनकी अचानक मृत्यु के बाद वह ठप हो गया. अधूरे प्रेक्षागृह में जंगल उगने लगा.
सेन और उनके साथियों ने 1993 में विश्व रंगमंच दिवस के मौके पर रंगाश्रम के जरिए प्रेक्षागृह के निर्माण होने तक हर शनिवार एक नाट्य प्रस्तुति करने का अनोखा संकल्प लिया था और शनिवार 19 मई को मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'सवा सेर गेहूं' की प्रस्तुति इस रंगयात्रा की 1,000वीं कड़ी थी. इसमें बतौर मुख्य अतिथि मौजूद सांसद योगी आदित्यनाथ कहते हैं, ''मैंने ऐसे आंदोलन बहुत कम देखे हैं, जिसमें कुछ लोग शहर की जरूरतों के लिए खुद तपस्या कर रहे हों.'' योगी अब जमीन के स्वामियों और शासन से संवाद की नई कोशिश कर रहे हैं ताकि कानूनी गतिरोध दूर हो सके.
मगर गोरखपुर विवि के ललित कला विभाग के एसोसिएट प्रो. डॉ. भारत भूषण सवाल करते हैं, ''क्या सारी जिम्मेदारी रंगाश्रम की ही है? उस शहर की जिम्मेदारी कुछ नहीं, जिसके लिए वे यह तपस्या कर रहे हैं?''
सेन और उनके सहयोगी विजय सिंह, पानमती शर्मा और सतीश वर्मा अगली प्रस्तुति की पटकथा पर बहस कर रहे हैं. कल्याण को पीलिया है, मगर 1,000वीं प्रस्तुति के लिए वह भी आया. विजय कहते हैं, ''दादा तो कबीर की तरह घर फूंककर अलख जगा रहे हैं.'' पर सवाल फिर भी वही है कि जिन लोगों के लिए अलख जगाई जा रही है, वे कहां हैं?
(आज तक डॉट कॉम से साभार)
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