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Wednesday, February 1, 2012

41 वर्षो से डोगरी की सेवा में समर्पित शिव


वर्ष 1946 में गांव हंट्ट के एक साधारण परिवार में जन्मे शिव दोबलिया पिछले 41 वर्षो से डोगरी भाषा के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं। एक वर्ष की आयु में ही पिता का देहांत हो गया। घर के हालात अच्छे न होने होने के कारण बसोहली में अपने नानी के घर आ गए। वर्ष 1969 में जेई की ट्रेनिंग के लिए जम्मू गए। वहां उनकी भेंट प्रोफेसर रामनाथ शास्त्री से हुई। उनकी प्रेरणा से दोबलिया पक्का डंगा में डोगरी संस्था की गोष्ठियों में भाग लेना शुरू किया और डोगरी साहित्य के सृजन में जुट गए। वर्ष 1971 में पहली कहानी ' लाल साड़ी' कल्चरल अकादमी की पत्रिका 'शिराजा' में प्रकाशित हुई। इसी वर्ष रेडियो कश्मीर जम्मू से इनकी पहली वार्ता 'कवि दत्त' प्रसारित हुई। फील्ड सर्वे आर्गेनाइजेशन की पत्रिका 'फुलवाड़ी' के संपादक मनसा राम चंचल उन्हें विषय देते थे, जिस पर वह लिखते। कृष्ण स्मैलपुरी उनकी रचनाओं से इतने प्रभावित हुए कि एक गीत दोबलिया को भेंट किया, जिसके बोल 'आउं चन्ना नौकरी तेरी मित्रा बसोहली देया' थे।

वर्ष 1972 में डोगरी शिरोमणि परीक्षा पास की और 1973-74 में रेडियो कश्मीर में कंपेयरर के पद पर रहे। वर्ष 1974 में सलाल विद्युत जल परियोजना में नौकरी लगने के बावजूद वह डोगरी के प्रति समर्पित रहे। 'लाटरी दा टिकट' उनका पहला रेडियो नाटक प्रसारित हुआ। रेडियो कश्मीर के संपादक एवं अधिकारियों के अनुरोध पर उन्होंने 'बदलता रूप' 'मेरा गांव' शीर्षक से बसोहली, बनी, रियासी, उधमपुर व कठुआ के बहुत से गांवों पर रूपक लिखे जो लोकप्रिय हुए। एक के बाद एक नाटक लिखते गए जिनका मंचन पाडर, शिमला, चंडीगढ़, जम्मू, ऊधमपुर, बिलावर, राजौरी व ज्योतिपुरम में हुई। वर्ष 1980 में ज्ञाणेश्वर शर्मा से मिलकर ज्योतिपुरम में डुग्गर साहित्य ज्योति संस्था का गठन किया।

उनका पहला हास्य-व्यंग्य संग्रह ज्योत था। बच्चों में डोगरी के प्रति नया जोश पैदा करने के उद्देश्य से त्रैमासिक जोत बाल पत्रिका शुरू की। वर्ष 1995 में बसोहली में दो दिवसीय डोगरी सेमीनार करवाया। इसमें डोगरी संस्था जम्मू की ओर से उन्हें वाइस चांसलर मल्होत्रा ने शाल एवं जम्मू विश्वविद्यालय ने स्मृति चिह्न भेंट किया। वर्ष 1993 में पटियाला की सांस्कृतिक सेंटर की ओर से कुल्लू दशहरा में डोगरी नृत्य कुड पेश किया। वर्ष 1994 में गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में कुड नृत्य किया, जिसे प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति ने सराहा। इनकी लिखी पुस्तकों में माता जोडेयां, श्रीस्थल किश्तवाड़, 'सुनो कहानी' व 'जंगल टापू' प्रमुख हैं। इन्हें डिग्री कॉलेज कठुआ, एनएसएस इंटरनेशनल, नवोदय विद्यालय समिति, गणतंत्र दिवस लोक नृत्य समारोह, झंकार क्लब ज्योतिपुरम, खालसा कॉलेज अमृतसर, एनएचपीसी ज्योतिपुरम, डोगरी संस्था जम्मू, कुल्लू दशहरा क्लब, नेताजी मेमोरियल स्कूल सम्मानित कर चुकी है। खेल मंत्री आरएस चिब ने भी उन्हें सम्मानित किया है। वह अपनी प्रेरणा का स्रोत पत्नी स्नेह लता को मानते हैं। उनके परिवार में दो बेटियां अनुराधा व नीतू एवं पुत्र अनिल दोबलिया हैं।

- रीतु शर्मा, बसोहली

(दैनिक जागरण से साभार)

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